चौहत्तर साल के जॉर्ज बोन एक समय ब्रिटेन के सबसे ज़्यादा टैटू वाले शख्स थे. आज भी वह लंदन में अपने नाम से स्टूडियो चलाते हैं.
लंदन टैटू कन्वेंशन, जो यूरोप में अपनी तरह का सबसे बड़ा आयोजन है, में भी वह सबसे अलग पहचाने जाते हैं.
उनको लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में टैटू गुदवाना बढ़ गया है. मुख्यधारा ने टैटू का टेक-ओवर कर लिया है. लेकिन चीज़ें जिस दिशा में जा रही हैं उससे वह बहुत खुश नहीं हैं.
"टैटू फ़ैशन एसेसरी में बदल गया है. मैं इसके ख़िलाफ़ हूं क्योंकि टैटू फ़ैशन एसेसरी नहीं है. यह तो जीने का एक तरीका है."
टैटू गुदवाना कुछ देशों में बहुत व्यापक हो गया है. बर्लिन की मार्केट रिसर्च कंपनी डैलिया रिसर्च ने 2018 में 18 देशों के 9,000 लोगों का सर्वेक्षण किया तो पाया कि अमरीका के 46 फीसदी उत्तरदाताओं ने टैटू गुदवा रखे थे.
स्वीडन में 47 फीसदी और इटली में 48 फीसदी लोगों ने टैटू बनवा रखे थे.
2010 में प्यू रिसर्च सेंटर ने पाया था कि अमरीका में 38 फीसदी मिलेनियल्स ने टैटू बनवाए थे (हालांकि 70 फीसदी लोगों के टैटू आम तौर पर दिखाई नहीं देते थे).
बदलती धारणा
कई जगहों पर टैटू अब समाज के बागियों की चीज़ नहीं रह गई है.
एंथनी फ़ाक्स कई निवेश बैंकों के लिए आईटी सलाहकार का काम करते हैं. वह कन्वेंशन में 47 साल की निकोले लोव से टैटू बनवा रहे हैं, जो ईस्ट लंदन के शोरेडिच में गुड टाइम्स टैटू की मालकिन हैं.
लोव फ़ाक्स की बायीं बाजू पर शाओलिन के पांच फ़ाइटर जानवर बना रही हैं- सांप, बाघ, ड्रैगन, तेंदुआ और बगुला. उनकी दाहिनी बांह पर पहले से ही एक बाघ और एक सांप बना है.
फ़ाक्स कहते हैं, "पहले मैंने सोचा था कि ऑफ़िस में मैं उनको ढंक लिया करूंगा लेकिन अब इसकी ज़रूरत नहीं. लोग इसकी तारीफ करते हैं."
पूरी डिज़ाइन बनवाने में फ़ाक्स को 12 हजार पाउंड (15 हजार डॉलर) ख़र्च करने पड़ेंगे. मगर जमे जमाये व्यवसायों में ख़ूब पैसे कमा रहे लोग ख़र्च की फिक्र नहीं करते.
कारोबार और सियासत के सीनियर लोग टैटू बनवा रहे हैं. इनमें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और न्यूज़ कॉर्प के कार्यकारी सह-अध्यक्ष लैक्लन मर्डोक शामिल हैं.
तो क्या जब राष्ट्रीय नेता और इंडस्ट्री के लीडर इसे अपना रहे हों तो टैटू को आधिकारिक मान्यता मिल गई? नहीं, बिल्कुल नहीं.
कुछ लोगों को अपने शरीर पर गोदी गई कलाकृतियों को दिखाने में कोई झिझक महसूस नहीं होती.
लेकिन ब्रिटेन, अमरीका और कई अन्य देशों में कंपनियां आज भी "नो टैटू" की नीति पर चलती हैं.
अमरीकी सेना सहित कई संगठनों ने विस्तृत दिशा-निर्देश बना रखे हैं कि क्या मंजूर है और क्या नहीं, जबकि अन्य संगठन सांस्कृतिक कारणों से छूट देते हैं.
मिसाल के लिए, 2019 में न्यूजीलैंड ने "नो विजिवल टैटू" पॉलिसी में आंशिक तौर पर छूट दी क्योंकि इससे पारंपरिक माओरी चिह्नों को छिपाना पड़ता, जिसके विरोध की पूरी-पूरी आशंका थी.
विशिष्ट सांस्कृतिक अपवादों को छोड़ दें तो रुढ़िवादी कॉरपोरेट नज़रिये ज़रूरी नहीं कि सामाजिक नज़रिये के साथ कदमताल करें.
ऐसा लग सकता है कि जिन देशों में ज़्यादा लोग टैटू बनवाते हैं वहां इनकी स्वीकार्यता अधिक होगी, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता.